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________________ धर्मशिक्षा. रना, घर घर भटक कर भीख माँगना लोग अच्छा समझते हैं, दो चार रुपयों के दास बनके जूता उठाना, अच्छी जातिवाले लोग भी पसंद करते, मगर उन्हें दीक्षा लेनेकी बात यदि सुनाई जाय, तो झट वे मुँह मरोड देते हैं, एक भी नहीं सुनते; तरह तरहकी संसारकी दारुण आपदाएँ भोगते हुए भी आदमीका मन साधुकृत्तिकी तरफ नहीं जाता, यह कितना मोहराजाका प्र. कोप?, खैर, गृहस्थपनहीमें अगर न्यायरीतिसे चलें, यह तीसरा व्रत बराबर पालें, तो भी बहुत सौभाग्यकी बात है । जिनकी बुद्धि, सामने दिखाई देते हुए परद्रव्य-सुवर्णादिको, पत्थर समझती है, वे, संतोषरूपी अमृतके रससे तृप्त बने हुए लोग, गृहस्थ ही क्यों न हों ?, बराबर स्वर्गकी रम्भाके परमप्रिय स्वामीनाथ बन सकते हैं । चौथा मैथुन विरमण व्रत eGbar मैथुन, यानी कामभोगकी चेष्टा, उससे विराम लेना, यह चौथा मैथुन विरमण व्रत कहाता है, अर्थात् ब्रह्मचर्य पालना। गृहस्थ लोग, क्या सर्वथा ब्रह्मचर्य पाल सकते हैं?, हर्गिज नहीं, अन्यथा सभी साधु बन जायेंगे; गृहस्थ पनमें रहने, और साधु वृत्ति नहीं लेनेका मुख्य उद्देश भोगविलास है, इसी लिये दरिद्र भी आदमी संसार नहीं छोड़ सकता, साधु नहीं बन सकता। मानलो ! कि यह व्रत अगर सब पालेंगे, तो अगाडी सन्तान नहीं बढनेसे सारा संसार, क्या उच्छिन्न न होगा?। वास्तवमें तो ब्रह्मचर्य, शिरपर उठाने पर, साधुवृत्तिमें बाकी रहा क्या?, अर्थात् सब लोग अगर ब्रह्मचारी बन जायँगे, तो साधु भी हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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