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धर्मशिक्षा.
कीर्तिको फैलाने वाला, हरिश्चन्द्र राजाकी तरह यावच्चन्द्र दिवाकर नाम रेखाको त्रिलोकीमें स्थायी रखने वाला, सभी ब्रह्मचर्यादि नियमोंको उज्ज्वलित रखने वाला, अन्यायको रत्ती भरभी अवकाश नहीं देने वाला, सर्व सम्पत्तिओंका मूल मन्त्र, और मुक्ति वनिताका वशी करण, सत्य वचन, हमेशा अपनी जिह्वापर बिराजे रहे, ऐसी कोशिश करनी चाहिये ।
तीसरा अदत्तादान विरमण व्रत
'अदत्त नहीं दी हुई वस्तुको, ' आदान उठा लेना, यह अदत्तादान, पापस्थानक है, उससे विराम लेना, यह पाप नहीं करना, पूछकर वस्तुको उठाना, यह तीसरा, अदत्तादान विरमण नामक व्रत है।
नीचे जमीन पर गिर गई, कहीं रख छोडी हुई ( जिसका स्मरण मालिकको न होता हो ), कहीं चली गई हुई, (जो मा. लिकके खयालमें न हो) मालिकके पास रही हुई, स्थापनकी हुई, और जमीनमें गाड रख्खी हुई, दूसरेकी चीज ( द्रव्य वगैरह) को, कभी नहीं ग्रहण करना चाहिये । चोरी करनेवाला आदमी दुर्भागी, दरिद्र, नौकर, दास, वगैरह क्षुद्र हद पर पहुँचता है,
और हाथ, पैरके कटवानेके भी प्रसङ्ग में आता है, ऐसा, भयङ्कर, चोरीका फल देख, कभी चोरी करनेका मन नहीं करना चा. हिये । तत्त्वदृष्टि करते यह मालूम होता है कि चोरी करने वाला पुरुष, दूसरेकी चोरी क्या करेगा ?, अगलतो अपनेही स्वार्थकी चोरीकरताहै,क्योंकि चोर पुरुषचारीरूप आगसे,अपना यहलोक परलोक, धर्म, धैर्य, स्वस्थता, और विवेक,सवको खाक बनाता है, यह
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