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________________ धशिक्षा. आत्मा सर्वत्र व्यापक है, इत्यादि । तीसरा अर्थान्तर, यानी दूसरी चीजको दूसरी कह देना, जैसे गायको घोडा कहना। चौथा गर्दा-मृषावाद, तीन प्रकारका है-एक सावध व्यापारका प्रवर्तन कराना, जैसे, 'खेतका कर्षण करो!' दूसरा अप्रिय, जैसे 'अंधे पुरुषको अंधा कहना, तीसरा आक्रोश करना, जैसे 'अरे व्यभिचारिणीका पुत्र' इत्यादि तिरस्कार गर्भित आक्रोश करना । अगर सर्व प्रकारसे मृषावादका परित्याग करना न बन सके, तो इतनी बातोंका मृषावाद तो जरूर वर्जना चाहिये-एक कन्या विषयक गप्प, ? । गाय विषपक गप्प, २ । भूमी विषयक गप्प, ३ । अपने पास किसी आदमीकी रक्खी हुई चीज (सुवर्ण आदि) का अपहार करना, उसे वापिस नहीं देनेके लिये नाना प्रकार प्रपञ्चयुक्त कहना, ४ । और झूठी साक्षी देना, ए । इन पाँचों में और सभी प्रकारके बडे बडे मृषावाद शामिल ही समझने चाहियें । ये मृषावाद बडे भयङ्कर, और इस जन्म व परलोकमें अति दारुण दुःख विपाकसे भेटानेवाले हैं। भूखा मरना बहत्तर है, कंगाल रहना अच्छा है, यशोद्धि न होना ठीक है, बापदादोंकी कार्य प्रणालीसे नीचे उतर जाना उमदा है, व्यवहार पद्धतिका प्रतिपालन, न वन आवे तो, नहीं करना उचित है, मगर पूर्वोक्त पांच प्रकारके, और उनके अन्तर्गत और बडे मृषावाद, दृष्टि विष महा सर्पकी तरह कभी नहीं सेवने चाहियें, इनके सेवनसे अपार दुःखराशि उठाना है, और उनके नहीं सपनेसे, अगर कंगाल स्थिति हो, तो इसी जन्ममें थोडासा कर उठा कर, परलोकमें बहुत आनंद प्राप्त करना है । मगर यह तो अवश्य खयालमें रहे कि दुष्ट हालाहल मृषावादका पल्ला पकडकर यदि कोई धनी होना चाहे, तो कभी नहीं हो सकता, अगर च हो जाय, तो भी कहाँ तक? थोडे ही मुद्दत तक । भयङ्कर मृषावा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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