SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और जहांपर भगवान निकलेथे वहांका पानीसें सबलोकोका उपकारके लीयें वह कूपका एलचराजाने बडा कुंड बंधाया. १०५ : उस वखत राजाकी विनतिसें मूरिजीनें वहांहो चातुर्मास करके पीछे भव्यजावोकुं प्रतिबोध देते हुवे दुसरे देशमें विहार करगये. १०६ इतनी बात बोलकर, पीछे पद्मावती देवीन, कहा कि, हे भावविजय! तुमभी वहां जाओ और वही प्रभुका आश्रय लो, एसा करने से हि तुमेरा दोनु नेत्रो पीछा आवेगा. १०७ इसतरह रात्रिमें (स्वममें ) पद्मावती देवीकी वाणी सुनकर अपना गुरुभाइको और श्रावकोकुं यहवात कहकें उन सबको साथलेकर में अंतरिक्षजी (श्रीपुर) गया. १०८ वहां पहोचनेसें संघ सब यात्रियोकों भगवानकें दर्शन हुवें लेकिन, अभाग्यशेखर एसा मेरेंको प्रभुकें दर्शन नहि हुवे. १०९ तब बडा खेदित होकर-अन्न पानीका त्याग करक भगवानकादर्शनमें उत्सुक बनकर मेने अनेक प्रकारक स्तोत्रोसें अन्तरिक्ष पार्थनाथजीकी स्तुति करना इसतरह शरुकीया. ११० अपकार करनेवालेकाभी रक्षण करनेवाला, कलिकालमेंभी प्रत्यक्ष चमत्कार बतलानेवाला, और इष्ट फलको देनेवाला हे प्रभु आपकुं नमस्कार हो. १११ हे नाथ ! विना स्वार्थ सर्पकों आपने धरणेन्द्र बनाया, और बति निष्ठुर कमठ नामका वैरी असुरकुंभी आपे सम्यक्त्व दिया.११२ हे दयारसके समुद्र ! हे स्वामिन् ! बहुत कालतक आपको www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy