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________________ पीछे आचार्य महाराजकी स्तुतिसें देवसें अधिष्ठित अंतरिक्षपाश्वनाथे स्वयं आकाशसें उतर करके सब लोको देखते वह मंदिरमें प्रवेश कीया. ९६ वहमंदिरमें भी जमीनसें सात अंगुल उंचा ( अधर) रहा हुवा प्रभुकी आचार्य विक्रम संवत ११४२ में माघ शुक्ल पंचमी रविवार के दिन विजय मुहूर्त में प्रतिष्ठा विधिसे प्रतिष्टा की. ९७-९८ । वह मंदिरमें हि भगवानकी आगे वाम (बांही) बाजुमें भगवानकी अधिष्टायका शासनदेवीको तीर्थरक्षाके लीयें सूरीजीए स्थापन कि. ९९ उस बखत एलच राजाने भगवानका शीरपर विविध तरेहका रत्नोसें सुशोभित मुकुटकों स्थापन करके और भगवानकें दोनु कणों में कुंडलो पहिना करके और भालस्थलमें श्रेष्ट हीराको स्थापन करकें, तथा अमृत वर्षने वाले चक्षुको स्थापन करके, तथा कंठमें मुक्ताफल (मोति)का हारको रख करके, और, शरीरपर सुवर्णकी आंगी चडाकरके, और सूर्य बिंबको निस्तेज करनेवाला भाम. डलकुं भगवानका मस्तकके पीछे रखकरकें तथा मस्तकके उपर मेघाडंबर नामका श्वेत छत्रको बांध करके, और अपने गलेमें संघविकीमाला पहिनकर तथा गुरुका वासक्षेपको शिरपर धारणकरके अज्ञानरूप अंधकारको दूर करनेके लीये आरती उतारी. १००-१०३ फिर वहां श्रीमान् (प्रभु)का निवास होनेसें श्रीपुर नामका एक नगर वसाकरके वह श्रीपुर नगरकुं एलराजानें भगवानकी पूजाके लीये अर्पण कीया. १०४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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