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सेवा करनेवाला आषाढाभूतिक नामका श्रावकको आपे मोक्ष दीया. ११३
भक्तिसें आलिंगन करता (कमल चडाता) हाथोकुं आपे स्वर्ग दीया, उस वखतसें आप 'कलिकुंड पार्थनाथ' इस नामसे जगतमें मसिद्ध हुवें. ११४
हे नाथ ! नव अंगकी टीका करनेवाले अभयदेव मूरिजीका कोढ रोगको नष्ट करके आपें कंचन तुल्य उस्का देह कोया. ११५
पालनपुरका मालिक पालणनामका परमार आपका चरण कमलकी सेवासें गया हुवा राज्यकुं पिच्छा मिलाया. ११६
हे नाथ ! उद्देशि शेठके घरमें आपें घीकी वृद्धि कोनी उससे आप 'घृतकल्लोल पाश्वनाथ' ए नामसें दुनीयामें प्रसिद्ध हुवें. ११७ ___ और पुत्ररूप फलकी प्रार्थना करने वालेकु वह फलकी आपे वृद्धि को उसमें पृथिवीतलमें आप 'फलद्धि पार्श्वनाथ ' इस नामस प्रसिद्ध हुवें. ११८
दाह और कीडा करकें युक्त कोढरोगवाला एलचपुरका राजाका कोढको हरण करके हे प्रभु आफै सुवर्णके समान उस्का शरीर कोया. ११९
यह कलियुगमें भी आकाशमें रहेनेकी आपकी इच्छा हुइ और हे प्रभु मल्लधारि अभयदेव मूरिजीकी स्तुतिसे संतुष्ट होकर मंदिरमें आ करके आप ठहरे हों. १२०
हे अनन्तश्लाघागर्भित ! अब में कितना वर्णन करूं. यदि हजार जीवावालाभी पार नही पावें तो में केसें पाउं. १२१
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