________________
प्रमुकें उपर उस्का दृष्टिपात हुवा उसी वखत प्रभुकी नीवेसें रथ निकल गया. ७७
वहा वडवृक्षको नीचे जमीनसें सात हाथ उंचा अन्तरिक्ष (आकाश) में रहे हूवे प्रभुकुं देखकें उसवखतसें ( लोको) अन्तरिक्ष (पार्श्वनाथ इस तरह) कहने लगें.७८
भगवान् मार्गमेंज रहनेसें खेदित हूवे, राजा राणी मंत्रि प्रमुखसें आराधित धरणेन्द्रनें कहा कि भगवान् इघरज रहेगा. ७२
ए बातकु सुनकर राजाने बडा विशाल रंगमंडपसें सोभित लक्षमुद्रा नामक मंदिर वहांही तैयार कराया. ८०
वह मंदिर संपूर्ण हुवा देखकर (राजाको अभिमान आनेसे बिचारने लगा किं अहो एसा मंदिरस मेरा नाम बहोत कालतक रहेगा. ८१ __बह मंदिरमें बेठनेके लीयें भगवानको राजाने प्रार्थना किया, लेकिन राजाको अभिमान होनेसें भगवाद ना आते है. ८२
उससे खेदित होकर राजाने फिर धरणेद्रको बोलाया परंतु वह धरणेंद्रभी राजाका अभिमानका कारनसेंहि आया नहि. ८३
तब अतिखेदित और बहुत दुःखी होकर राजाने मंत्रिसे पुच्छा कि प्रभु मंदिरमें आते नही है क्या उपाय किया जावे ? ८४
ए वचन सुनकर हृदयमें सोचकर मंत्री बोला हे स्वामिन् ! इसकार्यमें एक आय है सो मेरा वचन आप सुनें. ८५
सर्व शास्त्रोमें विशारद (विद्वान् ), और बहुत राजाओमें माननिक, एसा अभयदेव नामका आचार्य देवीका बलयुक्त सुनें है. ८६
www.umaragyanbhandar.com
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat