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________________ तंतुसे बांधकर सूतकु हाथमें पकडके घटकी तरह उस कूवेमें उतारना. ६९ उस पालखीमें मूर्ति में स्थापन करुंगा, पीछे बहार निकालके वधाकर नाडि (डांठा)का रयमें स्थापन करना. ७० - पीछे सातदिनके गोले दो बाच्छडे रथमें जोडक वह रथकी आगे आगे चलना, और तेरी पीछे पीछे वह रथ आपसे आप चला आयगा. ७१ इस तरह जहां तेरी इच्छा होवें तहांतक पार्थ प्रभुकी मूर्तिकुं लेजाना, लेकिन रस्तेमें पीछा देखना नही. यदि पीछे देखेगा तो, प्रभु नही आवेगा. ७२ __यह पंचमकाल होनेसे में मूर्ति अधिष्ठित होकर अदृष्टतया (पणे) मूर्तिकी उपासना करनेवालाका मनोरथ पूर्ण करुंगा. ७३ __ इस तरह बोलके पीछली रात्रीमें नागराज चला गया, पीछे प्रातःकालमें जाग्रत होके राजाने उसी वखत नागराजका कथनके अनुसार सब कीया. ७६ पीछे बाहिर आइ हुइ मृतिकुं नाल (जवारीका डांठे) का, रथमें स्थापन करके और सातदिनके दो वच्छडेकुं रथमें जोडकें रथके आगे राजा चल्या. ७५ कितनेक दूर मार्ग जाते राजा मनमें विचारनैलगा कि रथका अवाज सुननेमें नही आताहै तब क्या ! प्रभु नही आताहैं ? ७६ ... एसा विचारके राजाने प्रभुके सन्मुख वक्र दृष्टिसें देखा, जब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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