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है। उस मनोबलके कारण उसे यदि कभी अनेक हथियारबंद मनुव्यों का मुकाबिला करना पड़ता है तो भी करता है; इतना ही नहीं उसके वचनम भी इतनी शक्ति आजाती है कि, उसकी एक आवाज मात्रसे हजारों मनुष्य काँप उठते हैं। जिन मनुष्यमें ये तीन बल-मनोबल, वचनवल और कायनल-होते हैं वह कठिनसे कटिन कार्यको भी सफलतापूर्वक पूर्ण कर डालता है । इन बलों का प्रारंभ शरीर-स्वास्थ्यसे होता है । यह स्वास्थ्य नाना भाँतिके माल-मसाले खानसे या बाग बगीचों की सैर करनेसे नहीं मिलता है । यह मिलता है-ब्रह्मचर्य के पालनसे वीर्य को रक्षा करनेसे । सूखी रोटी और दाल खाते हुए भी जो ब्रह्मचर्य पालते हैं उनमें, जितनी शक्ति होती है, उतनी शक्ति नित्य हलुआ-पुरी खात हुए केर रयाँ दूध पीत हुए और महलों में अरामस रहत हुए भी ब्रह्मचर्कका भंग करनेवालों में नहीं होती । ऐसे भग महलोंमें आराम करनेवाले-मगर ब्रह्मचर्यको भंग करनेवाले दोचार मिलकर जंगल में जायें और उन्हें सामन कोई भील आता दीख जाय तो वहीं उनका राम निकल जाय । उनका हृदय घबराता है-"हाय ! हाय ! अब क्या होगा ? यह चोर तो नहीं है ? लूट तो नहीं लेगा ?" उनका यह भय ही उनके मनको निर्बलताका प्रत्यक्ष प्रमाण है । यह तो प्रसिद्ध ही है कि, ऐसे मनुज्योंका वचनवल तो हलकाही होगा।
इससे हम यह निश्चय कर सकते हैं कि, मनुव्यक उपयोगी तीनों बलों-मनोबल, वचनबल और कायबल-का आधार मुख्यतया ब्रह्मचर्य ही है । मैंने अपने गुजरात, काठियागड़, मारवाड़, मेवाड़, उत्तर हिन्दुस्थान, मगध और बंगालके विहारमें देखा है कि, इस पवित्र भारतवर्षमें ब्रह्मचका विशेष रूपसे ह्राम होता जा रहा है । जैसे प्रायः गृहस्थ शास्त्रमर्शदा और वैद्यकके नियमों को भूरकर, ब्रह्मचर्य के पवित्र नियमों का भंग करत हैं उसी भाँति, कई साधु और संन्यासी-जो ऊपरसे महात्मा होनेका अभिमान
करते हैं, परन्तु काम करते हैं महान दुरात्माओंसा-भी इन नियमोंको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com