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तोड़ते हैं। और जब भारतके भावी रत्नोंको; भारतकी भविष्य उन्नति आधारस्तंभ युवकोंको और बच्चोंको उनके अजायव घरोंमें ( स्कूलों और कोलेजोंमें ) जाकर देखते हैं तो अन्तःकरण दुःखी हुए विना नहीं रहता। वस, इन्हीं प्रधान कारणोंको लक्ष्यमें रखकर यह पुस्तक लिखी गई है । कबतक ब्रह्मचर्य पालना चाहिए ? व्याह करनेका हेतु क्या होना चाहिए ? साधुओंको ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिए कस कैसे नियमोंका पालन करना चाहिए ? संतान पर मातापिताको किस प्रकारसे लक्ष्य रखना चाहिए ? और ब्रह्मचर्व पालनेसे क्या लाभ है ? ये ही बातें इस पुस्तककी रचनाकी प्रधान लक्ष्यबिन्दु हैं । संक्षेपमें यह है कि, इस पुस्तकमें, गृहस्थ और साधु, स्त्री
और पुरुष, बालक और वृद्ध सबको उनके अधिकारानुसार ब्रह्मचर्य पालनेका उपदेश दिया गया है। इस विषयमें विशेष कुछ लिखना हाथकंगनको आरसीमें देखनेकासा होगा, इसलिए ऐसा न कर, अन्तःकरणपूर्वक यह इच्छा करता हूँ कि, इस पुस्तकको पढ़नेवाले ब्रह्मचर्यका विशेषरूपसे पालन कर शरीरबल, वचनबल और मनोबलकी अभिवृद्धि करें । अन्तमें यह भावना करता हुआ इस कथनको समाप्त करता हूँ कि, इस पुस्तककी योजनामें जिन पुस्तकोंका वाचन मेरे उपयोगमें आया है उन पुस्तकोंके लेखक भी इस पुस्तककी योजनासे होनेवाले पुण्यके भागी बनें ।
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