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धर्मशास्त्रों के प्रणेता निःस्पृह महर्षि
एवं वर्तमान काल के वैज्ञानिक
अनेक व्यक्ति ऐसा कहते हैं और सुनते हैं कि-धर्मशास्त्रों में 'भूगोल-विज्ञान के बारे में कोई व्यवस्थित वर्णन नहीं है और जो थोड़ा बहुत है वह भी यों ही है।' किन्तु स्थिति इससे कुछ विपरीत ही है। इस दृष्टि से हमारे धर्मशास्त्रों की मान्यता क्या है - यह दिखलाने से पूर्व एक बात और बतला देना आवश्यक समझते हैं कि धर्मशास्त्रों के प्रणेता कैसे थे ?
धर्मशास्त्रों के प्रणेता मुनिवर एवं ऋषिवर थे। वे लोग स्वार्थ की भावना से सदा परे रहते थे। वे लोक-कल्याण के लिये जीवित रहने वाले तथा जगत् का कल्याण चाहने वाले थे । उन्हें अपनी नाम-प्रसिद्धि की लोकपणा तनिक भी व्याकुल नहीं करती थी। राज्य के लोभ अथवा अन्य तामसी भावनाओं को उनके उदार अन्तःकरण में स्थान नहीं था। किसी भी प्रकार की जातीय आकांक्षा उनमें विद्यमान नहीं थी। उन महापुरुषों के पास अनेक भौतिक सुख उपस्थित करने की अतुलशक्ति विराजमान थी, तथापि वे भौतिक सुखों से अलिप्त रहते थे।
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