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इसी प्रकार नक्षत्रगण के भ्रमण से पृथ्वी स्थिर होते हुए भी सूर्योदयास्त आदि की प्रतीति हो सकती है और यह वस्तु मानने योग्य भी है। *
पृथ्वी भ्रमणशील नहीं है । पृथ्वी में गुरुत्व और स्थितिस्थापक धर्म विद्यमान हैं अतः वह गति नहीं कर सकती।
जो भ्रमणशील है, वह गुरुत्व और स्थिति स्थापकत्व गुण से युक्त नहीं हो सकता । जैसे कि वायु और अग्नि । वायु में गुरुत्व नहीं है इस लिये वह स्थिर नहीं है । अग्नि में स्थितिस्थापकत्व नहीं है इस लिये वह भी स्थिर नहीं है।
पृथ्वी में ऐसा नहीं होता, इस लिये पृथ्वी भ्रमणशील नहीं है।
यद्यपि श्रीवराह मिहिर और श्रीपति के तर्कों का खण्डन आज अन्य तर्कों द्वारा किया जाता है किन्तु वह खण्डन कितना अपूर्ण है इसका विचार आगे किया जाएगा।
*पृथ्वी न प्रगतिमती । गुरुत्व-स्थिति स्थापकोभयगुणवत्त्वात् । प्रगतिमत्, यत् न तद् गुरुत्व स्थितिस्थापकेत्युभयगुणवत् । यथा वायु तेजसी । न चेयं तथा । तस्मात् न तप्यति ॥
-सूर्यगतिविज्ञान पृ० ८
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