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( ३८ ) सर्वदेश और सर्वकाल में सर्व पुरुषों को भू-भ्रमण होता है ऐसा अनुभव नहीं होता।
किसी ( नौका आदि में बठे हुए) को नौका स्थिर है ऐसा अनुभव होता अवश्य है, किन्तु यह स्थिरता का अनुभव भ्रमपूर्ण है क्यों कि दूसरों को ( दूसरी नौका में बैठे हुए व्यक्तियों को अथवा किनारे पर रहने वालों को ) नौका आदि के भ्रमण का अनुभव होता है। ( इस तर्क से ) नौका की स्थिरता का अनुभव मिथ्या ठहरता है।
अनुमान प्रमाण से भी भू-भ्रमण का निश्चय करना सम्भव नहीं है । क्यों कि ऐसे प्रकार का अबिनाभावी लक्षण जाना नहीं जा सकता।
यदि ऐसा कहा जाए कि नक्षत्र-तारा समूह स्थिर हैं गौर सूर्योदय, सूर्यास्त, मध्याह्न आदि जो होते हैं वे भूगोलभ्रमण द्वारा होते हैं और यह अविनाभावी लक्षण है, तो यह
त तनिक भी उचित नहीं है क्यों कि यह विषय प्रमाणावधित बन जाता है।
कोई ऐसा कहे कि उष्ण है इस लिये प्रग्नि द्रव्य है, तो उसको यह भी मानना पड़ेगा कि ठंडा होने से जल भी द्रव्य है। इस पद्धति में उष्णता के समान शीलता भी द्रव्य की सिद्धि का कारण बन सकता है।
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