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उपसंहार स्पष्ट करना है कि स्थिरता - वादियों के
इस बिषय के उपसंहार में इतना विज्ञानवादियों के प्रत्येक समाधान पर अनेक प्रश्न अभी समाधान के स्वरूप को प्राप्त नहीं हुए हैं । और विज्ञानवादियों के प्रश्नों का स्थिरतावादी बराबर उत्तर देते हैं जब कि उत्तर के ध्रुव तारा सम्बन्धी प्रश्नों को विज्ञान वादी तनिक भी स्पर्श नहीं करते हैं और गुरुत्वाकर्षण तथा वातावरण के सिद्धान्त तो अपूर्ण हैं ।
साथ ही वैज्ञानिक स्वयं अनेक वस्तुनों के बारे में कहते हैं कि हमारा यह निर्णय अपरिवर्तनीय और अन्तिम नहीं हैं । इसमें परिवर्तन होने की सम्भावनाएँ शेष हैं । किन्तु हमारे यहाँ अनेक बुद्धिशाली जन इसको अन्तिम और अपरिर्बतीय निर्णय मान लेते हैं । परन्तु इस प्रकार अपनी बुद्धि के द्वार स्वयं ही बन्द कर देना यह समुचित नहीं हैं ।
सभी को विचार करना चाहिये कि - विज्ञान पर सर्वाधिक श्रद्धा रखने की अपेक्षा अपने भारतीय आगमों और वेदों पर श्रद्धा रखने में कौन-सा अनर्थ है ? आगमों और वेदों को सापेक्षता समझ में आएगी तो हमें तनिक भी कठिनाई नहीं होगी मुझे तो श्रद्धा में अत्यन्त लाभ दिखाई देता है, परन्तु सब के लिये स्वतन्त्र विचार की आवश्यकता रहती है ।
सम्यग् ज्ञान की ज्योति में सभी सत्य पदार्थों को देखें, यही आन्तरिक अभिलाषा है ।
इस विषय में परमात्मा की आज्ञा से कुछ विरुद्ध लिखा गया हो, तो मैं क्षमा चाहता हूँ । ॥ ओम् शान्ति ॥
मुद्रक :- त्रिलोकीनाथ मीतल, अग्रवाल प्रेस, मथुरा ।
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