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जिस प्रकार सूर्य और अग्नि में उष्णता हैं, चन्द्रमा में शीतलता है, पानी में द्रवता है, पत्थर में कठोरता है और वायु में चञ्चलता है इसी प्रकार पृथ्वी अपने स्वभाव से ही स्थिर है। वस्तुओं की शक्तियाँ विचित्र प्रकार की होती हैं । "स्थिरत्व यह पृथ्वी का स्वभाव है।"
भ्रामति भ्रम स्थितेव क्षितिरित्यपरे वदन्ति नोडुगणः। क्यक भ्योनादयो न खान: स्वनिलयमुपेयुः ।।
श्री वराहमिहिर पंच० सि० अ० १२-६
कुछ विद्वान् कहते हैं कि पृथ्वी घूमती है और तारा-ग्रह गरण नहीं घूमते हैं, यदि ऐसा ही हो, तो अपने घोंसले को छोड़ कर आकाश में उड़े हुए पी कुछ समय के पश्चात् घोंसले में पुनः किस प्रकार आ सकते हैं ।
पदि च भ्रमति क्षमा वदा, स्वकुलार्य कथमाप्नुयुः खगाः। इषवोऽपि नभः समुज्झिता, निफ्तन्तः सुखमापतेदिशः। पूर्वाभिमुखे भ्रमे भुवो बहणाशाभिम खो व्रजेद धनः । अथ मन्दगमात् तदा भवेत् कथमेकेन दिवा परिभ्रमः॥
-शि० वृ० गो० मध्याधिकार श्लोक ४२-४३
यदि पृथ्वी भ्रमण करती हो, तो पक्षी अपने घोंसलों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com