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________________ ( २३ ) भारतीयों द्वारा लिखे गये ग्रथं हैं। इनमें न भ्रमण सम्बन्धी प्रत्येक समस्याओं का तार्किक पद्धति से विचार किया गया है जो एक सुन्दर विश्लेषणात्मक वर्णन है । पृथ्वी-भ्रमण के सम्बन्धों में स्थिर हुई वैज्ञानिकमान्यता सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइन्स्टाइन के सापेक्षवाद से शिथिल हो जाती है। सापेक्षवाद के अनुसार गति और स्थिति ये दोनों ही ही सापेक्ष वस्तु बन जाती हैं । अतः पृथ्वी को ही घूमती हुई बताना असंगत-सा हो जाता है। इसके बारे में "जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान" नामक पुस्तक पृष्ठ ११५ से १२० में 'सापेक्षवाद के नये प्रकाश में' इस शीर्षक के नीचे दिये गये विचार मननपूर्वक पटनीय हैं: बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में सापेक्षवाद का उदय हुआ और वैज्ञानिक जगत् के बहुत सारे अभिमत अपेक्षा के एक नये मानदण्ड से परखे गये । न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण जो आधुनिक भूगोल शास्र की बहुत सारी कठिनाइयों को दूर करने वाला था सापेक्षवाद की कसौटी पर खरा नहीं उतरा । सूर्य और पृथ्वी की भ्रमणशीलता में जो 'ही' और 'भी' का मतवाद चलता था अर्थात् सूर्य ही चलता है या पृथ्वी भी चलतो हैं । प्राईस्टीन ने एक नया दृष्टिकोण उपस्थित किया। उसने बताया "गति व 1. Rest and motion are merely relative. -Mysterionus Universe. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com
SR No.034780
Book TitleBhugol Vigyan Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRudradev Tripathi
PublisherPunamchand Panachand Shah
Publication Year1968
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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