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समाधान किया जाता था। आकाश में उड़नेवाले पक्षी घोंसले में वापस कैसे आ सकते हैं ? बाण का निशाना बराबर कैसे लगे ? प्रचण्ड वायु से वस्तुओं का विनाश क्यों नहीं होता? इत्यादि बातों का समाधान वातावरण एवं गुरुत्वाकर्षण पदार्थ से माना गया है।)
यह सिद्धान्त बहुत व्यापक बना और अन्य वैज्ञानिकों की बातें गौरण बन गई । पृथ्वी के चर होने का सिद्धान्त राजमान्य हो गया। आज की समस्त पाठ्य पुस्तकों में इसी सिद्धान्त को स्थान मिला है।
गुरुत्वाकर्षण (Gravit, ation) तथा वायुमण्डल की पूरक कल्पनाएँ करने पर भी भूभ्रमणवादियों के समक्ष कतिपय प्रश्न आज भी यथावत् स्थित हैं । समाधान परिपूर्ण अथवा सन्तोषकारक नहीं हुए हैं।
__ जैसे कि ध्र वतारा उत्तर दिशा में स्थिर है । जब देखोगे तभी वह उत्तर दिशा में ही दिखाई देगा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार उत्तर में ध्र व तारा और पृथ्वी भी स्थिर है इसलिये यह सम्भव है।
परन्तु पृथ्वी को परिभ्रमणशील माना जाय तो यह ध्र वतारा एक ही स्थान पर नहीं देखा जा सकता। यह बात हम
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