________________
( १३ )
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥
-श्री यजुर्वेद ३३-४३ 'सूर्य ( सात अश्व वाले ) रथ से भुवनों को ( धुलोक ) और पृथ्वी को ) देखता हुआ गमन करता है।' प्रतिष्ठे वै द्यावा-पृथिवी।
-कोषितकी ब्राह्मण 'द्य लोक एवं पृथिवी सुस्थिर हैं।'
इस प्रकार आगम तथा वेदों में पृथ्वी की स्थिरता और सूर्य के भ्रमण की कैसी मान्यता है ? यह उपर्युक्त प्रमाणों से ज्ञात हो जाता है। पुराण ग्रन्थों और स्मृतियों में भी इनके अनरूप ही कई उल्लेख प्राप्त होते हैं।
इसी तरह मुस्लिम धर्म ग्रन्थ कुरान में भी इस विषय में कहा गया है
केवल खुदा ही जमीन और पास्मान को स्थिर रखता है क्यों कि कहीं वे अपने-अपने स्थान से खिसक न जाँय ! और यदि वे अपने स्थान से खिसक गये तो खुदा के अलावा कोई भी उसे स्थिर कर सके ऐसा नहीं है। और रात दिन होने का कारण सूर्य की गति है।
पारा नं० २२, सूरे फातिर आयत ४१ पारा नं० २३, सूरे यासोन अायत नं. ३६-४० ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com