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जाएगा । लाखों प्रयत्न हए और उनसे भी अधिक साधन दिये गये, किन्तु वे सब उपर्युक्त मान्यता को ही केन्द्र मानकर दिये गये हैं। इस विषय में वैज्ञानिकों के बीच कोई विशेष मतभेद नहीं हुआ।
अब प्रश्न यह होता है कि क्या आधुनिक वैज्ञानिकों को मान्यताएं सत्य होंगी? शुक्र, मंगल, चन्द्र जैसा ही क्या पृथ्वी ग्रह है ? क्या शुक्र, मंगल,चन्द्र आदि देवताओं के विमान नहीं होंगे ? आज के वैज्ञानिक वहाँ पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं तो क्या वे वहाँ पहुँच जाएंगे? इन दिखाई देनेवाले सूर्य, चन्द्र आदि में देव-देवियों की स्थिति की बातें क्या मिथ्या हो जाएंगी? क्या प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने कपोल कल्पनाएँ ही प्रस्तुत की होगी?
___उपर्युक्त प्रश्न तथा ऐसे ही अन्य अनेक प्रश्नों पर विशद रूप से विचार करना अत्यावश्यक है। अतः हम इसके दृष्टिकोण में पृथ्वी सम्बन्धी धर्मशास्त्रों के सिद्धान्त को समझ लें ।
धर्म शास्त्रीय मान्यताएँ लगभग प्रत्येक धर्मशास्त्रों का इस विषय में एक ही अभिप्राय है कि "पृथ्वी स्थिर है तथा सूर्य गतिमान है।'' ये धर्मशास्त्र पूर्व के हों अथवा पश्चिम के, किन्तु प्रत्येक की यही मान्यता है । जैसे
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