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१४ भगवान महावीर और उनका समय भेदवाली बातोंको मैंने पहलेसे ही छोड़ दिया है । उनके लिये इस छोटेसे निबन्धमें स्थान भी कहाँ हो सकता है ? वे तो गहरे अनुसंधानको लिये हुए एक विस्तृत आलोचनात्मक निबन्धमें अच्छे ऊहापोह अथवा विवेचनके साथ ही दिखलाई जानेके योग्य हैं।
देशकालकी परिस्थिति देश-कालकी जिस परिस्थितिने महावीर भगवान्को उत्पन्न किया
उसके सम्बन्धमें भी दो शब्द कह देना यहाँ पर उचित जान पड़ता है । महावीर भगवान्के अवतारसे पहले देशका वातावरण बहुत ही क्षुब्ध, पीड़ित तथा संत्रस्त हो रहा था; दीन-दुर्बल खूब सताए जातेथे; ऊँच-नीचकी भावनाएँ जोरों पर थीं; शूद्रोंसे पशुओंजैसा व्यवहार होता था, उन्हें कोई सम्मान या अधिकार प्राप्त नहीं था, वे शिक्षा दीक्षा और उच्च संस्कृतिके अधिकारी ही नहीं माने जाते थे और उनके विषय में बहुत ही निर्दय तथा घातक नियम प्रचलित थे; स्त्रियाँ भी काफी तौर पर सताई जाती थीं, उच्च शिक्षासे वंचित रक्खी जाती थीं, उनके विषयमें "न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति" (स्त्री स्वतंत्रताकी अधिकारिणी नहीं) जैसी कठोर आज्ञाएँ नारी थीं और उन्हें यथेष्ट मानवी अधिकार प्राप्त नहीं थे-बहुतोंकी दृष्टिमें तो वे केवल भोगकी वस्तु, विलासकी चीज़, पुरुषकी सम्पत्ति अथवा बच्चा जननेकी मशीनमात्र रह गई थीं; ब्राह्मणोंने धर्मानुष्ठान आदिके सब ऊँचे ऊँचे अधिकार अपने लिए रिजर्व रख छोड़े थे-दूसरे लोगोंको वे उनका पात्र ही नहीं समझते थेसर्वत्र उन्हींकी तती बोलती थी,शासन विभागमें भी उन्होंने अपने लिए खास रिआयतें प्राप्त कर रक्खी थी-घोरसे घोर पाप और बड़ेसे बड़ा अपराध कर लेने पर भी उन्हें प्राणदण्ड नहीं दिया जाता था, जब कि दूसरोंको एक साधारणसे अपराध पर भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com