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महावीर-परिचय स्वाति नक्षत्रके समय, निर्वाण-पदको प्राप्त करके आप सदाके लिये अजर, अमर तथा अक्षय सौख्यको प्राप्त हो गये * । इसीका नाम विदेहमुक्ति, आत्यन्तिक स्वात्मस्थिति, परिपर्ण सिद्धावस्था अथवा निष्कल-परमात्मपदकी प्राप्ति है । भगवान महावीर प्रायः ७२ वर्षकी अवस्था में अपने इस अन्तिम ध्येयको प्राप्त करके लोकापवासी हुए। और आज उन्हींका तीर्थ प्रवर्त रहा है।
इस प्रकार भगवान् महावीरका यह संक्षेपमें सामान्य परिचय है, जिसमें प्रायः किसीको भी कोई खास विवाद नहीं है । भगवज्जीवनीको उभय सम्प्रदाय सम्बन्धी कुछ विवादग्रस्त अथवा मत* जैसा कि श्रीपूज्यपादके निम्न वाक्यसे भी प्रकट है:“पद्मवनदीर्घिकाकुलविविवद्रुमखण्डमण्डिते रम्ये । पावानगरोद्याने व्युत्सर्गेण स्थितः स मुनिः ॥ १६ ॥ कार्तिककृष्णस्यान्ते स्वातावृक्षे निहत्य कर्म रजः । अवशेष संप्रापद् व्यजरामरमक्षयं सौख्यम् ॥ १७ ॥"
-निर्वाणभक्ति । x धवल और जयधवल नामके सिद्धान्त ग्रन्थों में महावीरकी आयु, कुछ आचार्योंके मतानुसार, ७१ वर्ष ३ महीने २५ दिनकी भी वतलाई है और उसका लेखा इस प्रकार दिया है :
गर्भकाल = मास ८ दिन, कुमारकाल = २८ वर्ष ७ मास १२ दिन, छास्थ-(तपश्चरण-) काल =१२ वर्ष ५ मास १५ दिन, केवल-(विहार) काल = २६ वर्ष ५ मास २० दिन।
इस लेखेके कुमारकालमें एक वर्षकी कमी जान पड़ती है, क्योंकि वह आम तौर पर प्रायः ३० वर्षका माना जाता है। दूसरे, इस आयु मेंसे यदि गर्भकालको निकाल दिया जाय, जिसका लोक व्यवहारमें ग्रहण नहीं होता तो वह ७० वर्ष कुछ महीनेकी ही रह जाती है और इतनी आयुके लिये ७२ वर्षका व्यवहार नहीं बनता।
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