________________
देशकालकी परिस्थिति फाँसी पर चढ़ा दिया जाता था; ब्राह्मणोंके बिगड़े हुए जाति-भेदकी दुर्गंधसे देशका प्राण घट रहा था और उसका विकास रुक रहा था, खुद उनके अभिमान तथा जाति-मदने उन्हें पतित कर दिया था और उनमें लोभ-लालच, दंभ, अज्ञानता, अकर्मण्यता, करता तथा धूर्ततादि दुर्गुणोंका निर्वास हो गया था; वे रिश्वतें अथवा दक्षिणाएँ लेकर परलोकके लिए सर्टिफिकेट और पर्वाने तक देने लगे थे; धर्मकी असली भावनाएँ प्रायः लुप्त हो गई थीं
और उनका स्थान अर्थ-हीन क्रियाकाण्डों तथाथोथे विधिविधानोंने ले लिया था; बहुतसे देवी-देवताओंकी कल्पना प्रबल हो उठी थी, उनके संतुष्ट करनेमें ही सारा समय चला जाता था और उन्हें पशुओंकी बलियाँ तक चढ़ाई जाती थीं; धर्मके नाम पर सर्वत्र यज्ञ-यागादिक कर्म होते थे और उनमें असंख्य पशुओंको होमा जाता था-जीवित प्राणी धधकती हुई आगमें डाल दिये जाते थे -और उनका स्वर्ग जाना बतलाकर अथवा 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' कहकर लोगोंको भुलावे में डाला जाता था
और उन्हें ऐसे कर कमों के लिये उत्तेजित किया जाता था। साथ ही, बलि तथा यज्ञके बहाने लोग मांस खाते थे । इस तरह देशमें चहुँ ओर अन्याय-अत्याचारका साम्राज्य था-बड़ा ही बीभत्स तथा करुण दृश्य उपस्थित था-सत्य कुचला जाता था, धर्म अपमानित हो रहा था, पीड़ितोंकी बाहोंके धुएँसे आकाश व्याप्त था और सर्वत्र असन्तोष ही असन्तोष फैला हुआ था। ___यह सब देख कर सज्जनोंका हृदय तलमला उठा था, धार्मिकों को रातदिन चैन नहीं पड़ता था और पीड़ित व्यक्ति अत्याचारोंसे ऊब कर त्राहि त्राहि कर रहे थे । सबोंकी हृदय तंत्रियोंसे 'हो कोई अवतार नया'को एक ही ध्वनि निकल रही थी और सबोंकी दृष्टि
एक ऐसे असाधारण महात्माकी ओर लगी हुई थी जो उन्हें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com