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________________ भगवान् महावीर उज्जाणे" आदि शब्दों से मालूम होता है कि वह नाय कुलं का ही था। उपरोक्त कथन से जैन शास्त्रों के उस कथन का समर्थन होता है । जिसमें "कुण्ड ग्राम" का "नायर" (नगर) की तरह उल्लेख किया गया है। क्योंकि कुण्डग्राम वैशाली का ही दूसरा नाम था। कल्प सूत्र पृष्ठ १०० वें में कुण्डपुर के साथ "नयरं समितर वाहिरियं" इस प्रकार का विशेषण लगा हुआ है। इस वर्मन से साफ मालूम होता है कि, यह वैशाली का ही वर्णन है । जिस सूत्र के आधार पर कुण्डग्राम को सन्निवेश सिद्ध किया जाता है । वह बराबर ठीक नहीं है। इन सब बातों से यह पता चलता है कि महावीर के पिता "सिद्धार्थ" कुण्डग्राम अथवा वैशाली नामक शहर के “कोलभाग" नामक पुरे में बसने वाले नाय जाति के क्षत्रियों के मुख्य सरदार थे । इस बात का प्रमाण हमें जैन ग्रन्थों में भी कई स्थानों पर मिलता है। कल्पसूत्रादि प्राचीन ग्रन्थों में "सिद्धार्थ" को "कुण्डग्राम" के राजा की तरह से बहुत ही कम स्थानों में वर्णित किया है अधिक स्थानों पर उसे साधारण क्षत्रिय सरदार की तरह लिखा है। यदि कहीं कहीं एक दो स्थानों पर राजा की तरह से उसका उल्लेख भी पाया जाता है तो वह केवल अपवाद रूप से। इन प्रमाणों से यह साफ जाहिर होता है कि “महावीर" की जन्मभूमि कौलांग ही थी और यही कारण है कि दीक्षा लेते ही वे सब से प्रथम अपनी जन्मभूमि के पास वाले दुईपलास नामक चैत्य में ही जा कर रहे, महावीर के माता पिता और दूसरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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