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________________ भगवान् महावीर है कि हम जिसको "वैशाली" नगरी कहते हैं वह बहुत ही लम्बी और विस्तृत थी। चीनी यात्री हुएनसङ्ग के समय में वह करीब १२ मील विस्तार वालीथी। उसके उस समय तीन विभाग थे । १-वैशाली जिसे आजकल "बेसूर" कहते हैं । २-वाणियग्राम-जिसे आज कल वाणिया कहते हैं। और ३-कुण्डग्राम जिसे आज कल वमुकुंड कहते हैं । कुण्डग्राम भी “वैशाली" का ही एक नाम था । वहीं 'महावीर' की जन्मभूमि थी । इसी कारण से सम्भवतः जैन शास्त्रों में कई स्थानों पर महावीर को “वैशालीय" संज्ञा से भी सम्बोधित किया है "बुद्धचरित्र" के ६२ वें पृष्ठ में लिखी हुई एक आख्यायिका से भी वैशाली के तीन भाग होना पाया जाता है। ये तीनों भाग कदाचित् “वैशाली" वाणिय ग्राम और कुण्ड ग्राम के सूचक होंगे । जो कि अनुभव से सारे शहर के आग्नेय, इशान्य और पश्चिमात्य भागों में व्याप्त थे। ईशान्य कोण में कुण्डपुर से आगे "कोल्लंगी" नामका एक मुहल्ला था जिसमें सम्भवत: "ज्ञातृ" अथवा "नाय" जाति के क्षत्रिय लोग बसते थे। इसी कुल में भगवान महावीर का जन्म हुआ प्रतीत होता है । सूत्र ६६ में इस मुहल्ले का न्याय कुल के नाम से उल्लेख किया गया है । यह "कोल्लांग सनिवेश" के साथ सम्बद्ध था। इसके बाहर “दुईयलास" नामक एक चैत्य था । साधारण चैत्य की तरह इसमें एक मन्दिर और उसके आसपास एक उद्यान था। इसी कारण से “विपाक सूत्र" "मैं उसे "दइपलास उज्जाण" लिखा है। और "नाय सण्डे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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