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________________ भगवान् महावीर रखते थे। पर गोचरभूमि सभी की सम्मिलित रहती थी। जितनी जमीन में खेती होती थी उसके उतने ही भाग कर दिये जाते थे जितने कि उस ग्राम में घर होते थे। सब लोग अपने अपने टुकड़ों में खेती करते थे। जल सिंचन के लिये नालियाँ बनाई जाती थीं । सारी जोती हुई भूमि की एक बाड़ रहतो थी । अलग अलग खेतों की अलग अलग बाड़ें न रहती थीं। सारी भूमि गाँव की मिल्कियत समझी जाती थी। प्राचीन कथाओं में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता कि जिसमें किसो भागीदार ने अपनी जोती हुई भूमि का भाग किसी विदेशी के हाथ वेंच दिया हो । किसी अकेले भागीदार को अपनी भूमि वसीयत करने का भी अधिकार न था । यह सब काम तत्कालीन रिवाजों के अनुसार होते थे। उस समय राजा भूमि का मालिक नहीं समझा जाता था । वह केवल कर लेने का अधिकारी था । आर्थिक अवस्था उस समय की दन्तकथाओं और पुराणों से पता चलता है कि उस काल में भी इस देश में कई प्रकार के व्यवसाय जारी थे । जैसे बढ़ई, लुहार, पत्थर छीलने वाला, जुलाहे, रंगरेज, सुनार, कुम्हार, धीवर, कसाई, व्याध, नाई, पालिश करने वाले, चमार, संगमरमर की चीजें बेचने वाले, चित्रकार आदि सब तरह के व्यवसाई पाये जाते थे, उनकी कारीगरी के कुछ नमूने प्रोफेसर रिस डेविड्स ने "बुद्धिस्टिक इण्डिया" नामक पुस्तक के छठे अध्याय में दिये हैं। सब तरह के व्यवसायों के होते हुए भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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