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________________ भगवान् महावीर ३२ ल उस समय प्रधान धंधा कृषि का ही समझा जाता था । आजकल की तरह न तो उस समय यहाँ की जनसंख्या ही इतनी बढ़ी हुई थी और न यहाँ का अन्न विदेशों में जाता था । इस कारण सब व्यक्तियों के हिस्से में जीवन-निर्वाह के पूर्ति या उससे भी अधिक ज़मीन पाती थी। खेती की उत्पन्न का दसवाँ हिस्सा जहाँ राज्य कोष में जमा कर दिया कि बस सब ओर से निश्चिन्तता हो जाती थी। सरदारों-सरकारी कर्मचारियों और पुरोहितों को इनाम की जमीन भी मिलती थी, पर उस ज़मीन का इन्तिजाम उनके हाथ में नहीं रहता था। इन्तिज़ाम के लिये दूसरे कृषिकार नियुक्त रहते थे। पैसे लेकर मजदूरी करने का रिवाज उस समय बिल्कुल न था । मजदूरी को लोग हेच समझते थे । सब लोग अपनी स्वतंत्र आजीविका से कमाते और खाते थे। न उस समय धनाढ्य और अमीर मिलते थे न निर्धन और ग़रीब । बहुत बड़े • कारखाने और फर्स भी उस समय नहीं थे। सब लोग अपने और अपने कुटुम्ब के निर्वाह के लायक छोटा सा धन्धा कर लेते और सन्तोष-पूर्वक जीवन-यापन करते थे। केवल ब्राह्मणों के स्वार्थ की मात्रा बढ़ी हुई थी। और इसी कारण समाज के इतर लोगों के हृदय में उनके प्रति घृणा के भाव उदय हो रहे थे। सामाजिक-स्थिति उपरोक्त विवेचन पढ़ने से पाठकों के मन में उस समय की राजनैतिक और आर्थिक अवस्था के प्रति कुछ श्रद्धा की लहर का उठना सम्भव है । पर उन्हें हमेशा इस बात को ध्यान में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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