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________________ भगवान् महावीर ३०४ यहां पर इसी विषय का एक ऐतिहासिक उदाहरण पाठकों के सम्सुख पेश करते हैं। गुजरात के अन्तिम सोलंकी राजा दूसरे भीमदेव के समय में एकबार उनकी राजधानी "अनहिलपुर" पर मुसलमानों का आक्रमण हुआ। राजा उस समय राजधानी में उपस्थित न था केवल रानी वहां मौजूद थी। मुसलमानों के आक्रमण से राज्य की किस प्रकार रक्षा की जाय इसके लिये राज्य के तमाम अधिकारियों को बड़ी चिन्ता हुई। उस समय दण्डनायक अथवा सेनाध्यक्ष के पद पर "आभू" नामक एक श्रीमाली वणिक था। वह उस समय उस पद पर नवीन ही आया था। यह व्यक्ति पक्का धर्माचरणी था। इस कारण इसकी रण चतुरता पर किसी को पक्का विश्वास न था, एक तो राजा उस समय वहां उपस्थित न था, दूसरे कोई ऐसा पराक्रमी पुरुष न था जो राज्य की रक्षा का विश्वास दिला सके और तीसरे राज्य में युद्ध के लिये पूरी सेना भी न थी। इससे रानी को और दूसरे अधिकारियों को अत्यन्त चिन्ता हो गई। अन्त में बहुत विचार करने के पश्चात् रानी ने "आभू" को अपने पास बुलाकर शहर पर आने वाले भयंकर संकट कीसूचना दी और उसकी निवृति के लिये उससे सलाह पूछी । दण्ड नायक ने अत्यन्त नम्र शब्दों में उत्तर दिया कि यदि महारानी साहिबा मुझ पर विश्वास करके युद्ध सम्बन्धी पूर्ण सत्ता मुझे सौंप देगी तो मुझे विश्वास है कि मैं अपने देश की दुश्मनों के हाथों से पूरी तरह रक्षा कर लूंगा। आभू के इस उत्साह दायक कथन से आनन्दित हो रानो ने. उसी समय युद्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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