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भगवान् महावीर
सम्बन्धी सम्पूर्ण सत्ता उसके हाथ में सौंप कर युद्ध को घोषणा कर दी, सेनाध्यक्ष "आभू" ने उसी दम सैनिक सङ्गठन कर लड़ाई के मैदान में पड़ाव डाल दिया। दूसरे दिन प्रातःकाल युद्ध प्रारम्भ होनेवाला था। पहले दिन सेनाध्यक्ष को अपनी सेना को व्यवस्था करते करते संध्या हो गई। यह व्रतधारी श्रावक था। दोनों वक्त प्रतिक्रमण करने का इसे नियम था । संध्या होते ही प्रतिक्रमण का समय समीप जान इसने कहीं एकान्त में जाकर प्रतिक्रमण करने का निश्चय किया । परन्तु उसी समय उसे मालूम हुआ कि यदि वह युद्ध स्थल को छोड़ कर बाहर जायगा तो सेना में विशृंखला होने की संभावना है। यह मालूम होते ही उसने अन्यत्र जाने का विचार छोड़ दिया और हाथी के हौदे पर हो बैठे २ प्रतिक्रमण प्रारम्भ कर दिया । जिस समय वह प्रतिक्रमण में आये हुए "जे में जीवा विराहिया-एंगिदिया बॅगिदिया" इत्यादि शब्दों का उच्चारण कर रहा था। उसी समय किसी सैनिक ने इन शब्दों को सुन लिया । उस सैनिक ने एक दूसरे सरदार के पास जाकर कहाः-देखिये साहब ! हमारे सेनापति साहब इस युद्ध के मैदान में जहाँ पर की "मार मार" की पुकार और शस्त्रों को खन खनाहट के सिवाय कुछ भी सुनाई नहीं पड़ता है-“एंगि दिया बेंगिदिया" कर रहे हैं। नरम नरम हलवे के खानेवाले ये श्रावक साहब क्या बहादुरी बतलावेंगे ? शनैः शनैः यह बात रानी के कानों तक पहुँच गई, जिससे वह बड़ो चिन्तित हो गई, पर इस समय और कोई दूसरा उपाय न था इस कारण भविष्य पर सब भार छोड़ कर वह चुप हो गई। दूसरे
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