SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०३ भगवान् महावीर रूपवती पत्नी है। यदि कोई दुष्ट विकार या सत्ता के वशीभूत होकर दुष्ट भावना से उस स्त्री पर अत्याचार करने की कोशिश करता है तो उस गृहस्थ का परम कर्त्तव्य होगा कि वह अपनी पूर्ण शक्ति के साथ उस दुष्ट से अपनी स्त्री की रक्षा करे, यदि ऐसे कठिन समय में उसके धर्म की रक्षा करने के निमित्त उसे उस आततायी की हत्या भी कर देना पड़े तो उसके व्रत में कोई भी वाधा नहीं पड़ सकती । पर शर्त यह है कि हत्या करते समय भी उसकी वृत्तियां शुद्ध और पवित्र हों। यदि ऐसे समय में अहिंसा के वशीभूत होकर वह उस आततायी का प्रतिकार करने में हिचकिचाता है तो उसका भयंकर नैतिक अधःपात हो जाता है जो कि हिंसा का जनक है। क्योंकि इससे प्रात्मा की उच्च वृत्ति का घात हो जाता है। अहिंसा के उपासक के लिए अपनी स्वार्थवृत्ति के निमित्त की जाने वाली स्थूल या संकल्पी हिंसा का पूर्ण त्याग करना अत्यन्त आवश्यक है जो लोग अपनी क्षुद्र वासनाओं की तृप्ति के निमित्त दूसरे जीवों को क्लेश पहुँचाते हैं-उनका हनन करते हैं-वे कदापि अहिंसा धर्म का पालन नहीं कर सकते । अहिंसक गृहस्थों के लिए वही हिंसा कर्त्तव्य का रूप धारण कर सकती है जो देश जाति अथवा आत्म-रक्षा के निमित्त शुद्ध भावनाओं को रखते हुए मजबूरन की गई हो । इतने विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा ब्रत पालन करते हुए भी मनुष्य युद्ध कर सकता है, आत्म-रक्षा के निमित्त हिंसक पशुओं का बध कर सकता है, यदि ऐसे समय में वह अहिंसा धर्म की आड़ लेता है तो अपने कर्तव्य से च्युत होता है। इसी बात को और भी स्पष्ट करने के निमित्त हम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy