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________________ भगवान् महावीर ३०० १-किसी भी प्राणी को संकल्प करके मारना, उसे संकल्पी हिंसा कहते हैं-जैसे कोई चिउँटी जा रही है, बिना ही कारण केवल हिंसक भावना से जान बूझ कर उसे मार डालना उसे संकल्पी हिंसा कहते हैं। २-गृह कार्य में, स्नान में, भोजन बनाने में, भाडू देने में ,जल पीने आदि में जो अप्रत्यक्ष जीव हिंसा हो जाती है, उसे प्रारम्भी हिंसा कहते हैं। ३-व्यापार में, व्यवहार में, चलने में, फिरने में जो हिंसा होती है उसे व्यवहारी हिंसा कहते हैं। ४-विरोधो से अपनी आत्म-रक्षा करने के निमित्त अथवा किसी आततायी से अपने राज्य, देश अथवा कुटुम्ब की रक्षा करने के निमित्त जो हिंसा करनी पड़ती है उसे विरोधी हिंसा कहते हैं। ___इसके पश्चात् स्थूल अहिंसा और सूक्ष्म अहिंसा, द्रव्य अहिंसा और भाव अहिंसा, देश अहिंसा और सर्व अहिंसा इत्यादि और भी कई भेद किये गये हैं। १-किसी भी चलन वलन वाले प्राणी को प्रतिज्ञापूर्वक न मारने को स्थूल अहिंसा कहते हैं। यह संकल्पी अहिंसा का ही दूसरा रूप है। २-सब प्रकार के प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुँचाने को सूक्ष्म अहिंसा कहते हैं। १-किसी भी प्रकार के जीव को अपने शरीर से कष्ट न पहुँचाना उसको द्रव्य अहिंसा कहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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