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________________ ३०१ भगवान् महावीर २-किसी भी प्रकार के जीव को भावों से कष्ट न पहुँचाने को भाव अहिंसा कहते हैं। १-किसी भी प्रकार की आंशिक अहिंसा की प्रतिज्ञा को देश अहिंसा कहते हैं। २-सार्वदेशिक अहिंसा की प्रतिज्ञा को सर्व-अहिंसा कहते हैं। उपरोक्त भेदों में गृहस्थ द्वारा आचरणीय और मुनि के द्वारा आचरणीय अहिंसा में भेद हैं-उनका खुलासा करने से जैनअहिंसा तत्व का और भी स्पष्टीकरण हो जायगा । गृहस्थ का स्थूल-अहिंसा धर्म यद्यपि आत्मा के अमरत्व की प्राप्ति के लिये और संसार के सर्व बन्धनों से मुक्ति पाने के लिए अहिंसा का पूर्ण रूप से पालन करना आवश्यक है तथापि संसार निवासी तमाम मनुष्यों में इतनी योग्यता और इतनी शक्ति एक दम कदापि नहीं हो सकती। इस कारण न्यूनाधिक योग्यतावाले मनुष्यों के लिये तत्वज्ञों ने उपरोक्त अहिंसा के भेद कर उनके मार्ग को आसान कर दिया है। . अहिंसा के इन भेदों की तरह उनके अधिकारियों के भी जुदे जुदे भेद किये हैं । जो लोग पूर्ण रीति से अहिंसा का पालन नहीं कर सकते वे गृहस्थ-श्रावक-उपासक-अणुव्रती-देशव्रती इत्यादि नामों से सम्बोधित किये गये हैं। ___ उपरोक्त चार प्रकार की हिंसाओं में गृहस्थ केवल संकल्पी हिंसा का त्यागी होता है अथवा यों कहिये कि भाव हिंसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com ९
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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