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________________ २४९ भगवान् महावीर दस आदमियों को प्रबोध कर दीक्षा लेने के निमित्त वीर प्रभु के पास भेजते रहे । एक दिन जब कि उनका भोग फल कर्म क्षीण हो चुका था, उन्हें केवल नौ ही आदमी दीक्षा ग्रहण करनेवाले मिले । दसवां एक सोनी था, पर वह किसी प्रकार प्रबोध न पाता था, उसी दिन नन्दीषेण मुनि ने उस वैश्या को छोड़ कर दशमस्थान की पूर्ति की। __ कई स्थानों में भ्रमण करते हुए भगवान महावीर "क्षत्रिय कुण्ड" ग्राम में पधारे। वहाँ समवशरण सभा में बैठ कर उन्होंने उपदेश दिया। प्रभु को पधारे हुए जान नगरनिवासी बड़ी भारी समृद्धि और भक्ति के साथ प्रभु की वन्दना करने को गये थे। तीन प्रदक्षिणा दे, जगद्गुरु को नमस्कार कर वे अपने योग्य स्थान पर बैठ गये। उसी समय भगवान् महावीर के जमाता जमालि उनकी पुत्री प्रियदर्शना सहित प्रभु की वन्दना करने को आये । भगवान् के उपदेश से प्रबोध पाकर उन दोनों पति-पत्नी ने गुरु जनों से दीक्षा लेने की अनुमति ले दीक्षा ग्रहण की। जमालि ने ५०० आदमियों के साथ और प्रियदर्शना ने एक हजार स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण की। अनुक्रम से जमालि मुनि ने ग्यारह अङ्गों का अध्ययन कर लिया । तब प्रभु ने उनको एक हजार मुनियों का आचार्य बना दिया। उनके पश्चात् उन्होंने और भी उग्र तपस्या करना प्रारम्भ किया। इधर चन्दना का अनुकरण करती हुई प्रियदर्शना भी उग्र तप करने लगी। एक बार जमालि ने अपने परिवार सहित प्रभु की वन्दना कर कहा-"भमवन् यदि आपकी आज्ञा हो तो अब हम स्वतShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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