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________________ भगवान् महावीर २४८ क्षीण करना आरम्भ किया। पर जिस भोग फल कर्म का उदय टालने में तीर्थकर भी असमर्थ हैं उसे वे किस प्रकार टाल सकते थे। ___ एक बार नन्दीषेण मुनि अकेले छट्ट का पारणा करने के निमित्त शहर में गये। अन्त भोग के दोष से प्रेरित होकर उन्होंने एक वैश्या के घर में प्रवेश कर धर्म-लाभ इस शब्द का उच्चारण किया। वैश्या ने उत्तर में कहा, "मुझे तो अर्थ लाभ की जरूरत है। मैं धर्म कर्म को क्या करूं।" ऐसा कह कर विकार युक्त हृदय वाली वह वैश्या हँसने लगी। उस समय यह वैश्या मुझे क्यों हँसती है, इस प्रकार विचार कर उन्होंने अपनी लब्धि के बल से वहाँ पर रत्नों के ढेर कर दिये । "पहले अर्थ लाभ" ऐसा कह कर नन्दीषेण मुनि चलने लगे। यह देख वैश्या पीछे दौड़ी और कहा-"प्राणनाथ, इस कठिन वृत्त को छोड़ दो और मेरे साथ स्वर्गीय भोगों को भोगो।" इस प्रकार कह कर उसने उन्हें पकड़ लिया और बार बार व्रत छोड़ने का आग्रह करने लगी। इस समय नन्दीषण ने व्रत छोड़ने के दोष को जानते हुए भी भोग फल कर्म के वश होकर उसका कथन स्वीकार किया। पर उसके साथ ही उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि, "जो मैं प्रति दिन दश अथवा इस से अधिक मनुष्यों को बोध न करूँ तो उसी दिन पुनः दोक्षा ग्रहण, कर लूं।" ___यह प्रतिज्ञा कर उन्होंने मुनिलिम, को छोड़ दिया। और. वैश्या के साथ भोग भोगते हुए अपने अन्तः करण की उस आवाज का स्मरण करने लगे। वहाँ रहते हुए भी वे प्रति दिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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