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________________ २४७ भगवान् महावीर - धम से गिर पड़ा। भूख और प्यास की यन्त्रणा से तीसरे दिन मृत्यु हो गई, उसी खरगोश पर, की गई दया के प्रताप से तू राजपुत्र हुआ है । एक खरगोश की रक्षा के लिये जब तैने इतना कष्ट सहन किया तो फिर इन साधुओं के चरण-संघर्ष के कष्ट से क्यों खेद पाता है । इसलिये जिस वृत्त को तैने धारण किया है, उसको पूरा कर और भवसागर से पार हो जा।" प्रभु के इस वक्तव्य को सुन कर मेघकुमार शान्त हुआ, उसे अपनी इस कमजोरी का बड़ा पश्चात्ताप हुआ और अब वह बड़े साहस के साथ कठिन से कठिन तपस्या करने में प्रवृत्त हुआ। ___एक दिन प्रभु के उपदेश से प्रतिबोध पाकर श्रेणिक काः दूसरा पुत्र नन्दीषेण दीक्षा लेने को तत्पर हुआ। उसे भी उसके पिता ने बहुत समझाया । पर न मानने से लाचार होकर उसे भी आज्ञा दो। जिस समय नन्दीषेण दीक्षा लेने के निमित्त जा रहा था उसी समय उसके अन्तः करण में मानों किसी ने कहा कि "वत्स ! तू व्रत लेने को अभी से क्यों. उत्त्सुक हो रहा है ? अभी तेरे चरित्र पर आचरण डालनेवाला: भोग फल कर्म शेष है। जहाँ तक उस कर्म का क्षय न हो जाय वहाँ तक तू घर में रह पश्चात् दीक्षा ले लेना।" पर नन्दीषण ने अन्तःकरण के इस प्रबोध की कुछ परवाह न की और वह प्रभु के पास आया। उन्होंने भी उसे उस समय दीक्षा लेने से मना किया। पर उसने अपने हठ को न छोड़ा और क्षणिक आवेश में आकर दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षा लेते ही उन्होंने अत्यन्त उग्र तपस्या कर अपना शरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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