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________________ भगवान् महावीर २५० न्त्रता पूर्वक विचरण करें।" पर भगवान महावीर ने ज्ञान चक्षुओं के द्वारा भविष्य में उनके द्वारा होने वाले अनर्थ को जान लिया। इस कारण उन्होंने उनकी बात का कुछ उत्तर न देकर मौन ग्रहण कर लिया। इधर जमालि "मौनं सम्मति लक्षणं" समझ कर परिवार सहित विहार करने को निकल पड़े। विहार करते करते अनुक्रम से वे श्रावस्ती नगरी में आये । वहाँ कोष्टक नामक उद्यान में वे ठहरे । यहाँ पर विरस, शीतल, रूखे, तुच्छ, और ठण्डे अन्नपान का व्यवहार करने से उनके शरीर में पित्तज्वर की पीड़ा उत्पन्न हो गई। इस पीड़ा के कारण वे अधिक समय तक खड़े नहीं रह सकते थे। इस कारण पास ही के एक मुनि से उन्होंने संथारा (आसन) करने को कहा । मुनियों ने तुरन्त संथारा करना प्रारम्भ किया। पित्त की अत्यन्त पीड़ा से व्याकुल होकर जमालि बार २ मुनियों से पूछने लगे कि-"अरे साधुओं। क्या संथारा प्रसारित कर दिया।" साधुओं ने कहा कि-"संथारा हो गया ।" यह सुन जमालि तुरन्त उनके पास गये, वहाँ उनको संथारा बिछाते देख वे जमीन पर बैठ गये। उसी समय मिथ्यात्व के उदय से क्रोधित हो उन्होंने कहना प्रारम्भ किया "अरे साधुओं ! हम बहुत समय से भ्रम में पड़े हुए हैं। चिरकाल के पश्चात् अब मेरे ध्यान में यह बात आई है कि जो कार्य किया जा रहा हो उसे कर डालो" ऐसा नहीं कह सकते । संथारा बिछाया जा रहा था। ऐसी हालत में तुमने "विछा दिया" यह कर असत्य भाषण किया है । इस प्रकार असत्य बोलना अयुक्त है । जो उत्पन्न हो रहा हो, उसे उत्पन्न हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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