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________________ भगवान् महावीर १५४ बड़े बड़े तपस्वियों की तपस्या स्खलित हो जाती है। शङ्कर सरीखे योगीराज और विश्वामित्र के समान तपस्वी भी इसके फेर में पड़ कर स्कलित हो गये थे । मनुष्य प्रकृति का यह बिन्दु बहुत ही कमजोर रहता है इसी कारण हिन्दू धर्म शास्त्रों में काम को सर्वविजयी कहा है । और इसी कारण भगवान के सच्चे भक्त दुखमय जीवन को ही अधिक पसन्द करते हैं। तपस्या में प्रविष्ट होने वाला हिन्दू सबसे पहले ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि "हे प्रभु ! कष्ट दायक उपसर्गों में मैं अपना स्वत्व प्रदर्शित करने में समर्थ हूँ, पर अनुकूल और वैभव युक्त स्थिति की परीक्षा में शायद मैं असमर्थ हो जाऊँ, इस कारण मुझे ऐसी परिस्थिति से हमेशा बचाये रखना ।" ___"सङ्गम" इस निर्बलता के स्वरूप को भली प्रकार जानता था और इसी कारण उसने सब ओर से असफल होकर इस कठिन परीक्षा में भगवान महावीर को डाला। उसने अपनी दैवी शक्ति से अनेक प्रकार के फल फूलों और कामोत्तेजक द्रव्यों से युक्त बसन्त ऋतु का आविर्भाव किया और उसके साथ कई ललितललनाओं की उत्पत्ति कर उसने कामसैन्य की पूर्ति की । __अपने अनुपम सौन्दर्य की राशि से विश्व को विमोहित करने वाली अनेक सुंदर सलोनी रमणियां महावीर के आस पास आकर रास रचने लगीं। नाना प्रकार के हावभाव, कटाक्ष और मोहक अङ्ग विशेष से वे अपनी केलि-कामना प्रकट करने लगीं। कई प्रकार के बहानों से वे अपने शरीर पर के वस्त्रों को ढीले करने लगी, और बँधे हुए केशपाश को ऊँचे हाथ करके बिखरने लगी। कुछ लावण्यवती वालिकाओं ने कामदेव के विजयी पुष्पShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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