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________________ १५३ भगवान् महावीर है कि वह मनुष्य प्रकृति के गूढ़ सिद्धान्तों से बहुत परिचित था, सबसे पहले उसने भगवान महावीर को शारीरिक वेदना देना प्रारम्भ की, और ज्यों ज्यों वे वेदनाएँ निष्फल होती गई त्यों त्यों वह उनका रूप भीषण करता गया । मनुष्य की कल्पना शक्ति विनाश के जिन जिन साधनों की योजना कर सकती है, वे सब साधन उसने प्रभु पर आजमाए और अन्त में घबराकर उसने एक अत्यन्त वजनदार लोह का गोला उन पर फेंका । कहा जाता है कि उसके आघात से वे घुटने पर्यन्त पृथ्वी में घुस गये। इससे भी जब उनके दिव्य शरीर को हानि न पहुँची, तब वह शारीरिक उपसर्गों की ओर से प्रायः निराश हो गया। लेकिन एक ओर से निराश हो जाने पर भी उसने दूसरी ओर से आशा न छोड़ी, वह मनुष्य प्रकृति का गहरा पण्डित था, मनुष्य प्रकृति की निर्बल बाजुओं को वह पहचानता था । वह जानता था कि बड़े से बड़े महापुरुषों में भी कोई न कोई ऐसी कमजोरी होती है कि जिसमें किया हुआ थोड़ा सा आधात भी असर दिखाता है, यह सोचकर उसने महावीर पर शारीरिक आपत्तियों की वर्षा बन्द कर मानसिक प्रहार करना प्रारम्भ किया, प्रतिकूल उपसगों को एक दम बन्द कर उसने अनुकूल उपसर्ग करना आरम्भ किया। प्रतिकूल उपसगों को सहन करने में बड़े भोषण साहस की दरकार होती है, फिर भी ऐसे उपसगों को सहन करने वाले योगी संसार में मिल ही जाते हैं, पर अनुकूल उपसर्गों पर विजय पाने वाले बहुत ही कम महापुरुष संसार में दृष्टिगोचर होते हैं । वासना, मोह, या काम ये ऐसी वस्तुएँ हैं जिनके फेर में पड़कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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