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________________ भगवान् महावीर ११२ जैन और बौद्ध इन दोनों धर्मों का जब हम अध्ययन करते हैं तो मालूम होता है कि इन दोनों धर्मों के मोटे मोटे सिद्धान्त. प्रायः समान ही हैं। कई सिद्धान्तों में तो आश्चर्यजनक समानता पाई जाती है, मत भेद उन्हीं स्थानों पर जाकर पड़ता है जहां पर कि साधारण जनता की पहुँच नहीं है। जहां तक हम सोचते हैं इस समानता का प्रधान कारण हमें तत्कालीन समाज की रुचि ही मालूम होती है। दोनों ही महापुरुषों ने लोक रुचि के विरुद्ध पैर रखना उचित न समझा और इसी कारण उनमें आश्चर्य जनक समानता पाई जाती है, दोनों ही धर्मों का मुख्य सिद्धान्त अहिंसा है। यदि हम यह भी कह दें कि, इसो उचल तत्त्व पर दोनों धर्मों की नींव रक्खी हुई है तो भी अनुचित न होगा। अब हम यदि इस विषय पर विचार करें कि इनका प्रधान तत्त्व "अहिंसा" और "साम्यवाद" ही क्यों हुआ तो इसका समाधान करने के लिए इतिहास तत्काल ही हमारे सम्मुख उस समय के "हिंसाकाण्ड" का और 'असम्यता' का चित्र खींच देता है, बस, तत्काल ही हमारा सन्तोष कारक समाधान हो जाता है। .. . । यहां तक तो हमने उस समय की स्थिति और उसके साथ प्रकृति के लगाव का वर्णन किया अब हम अपने ग्रन्थ-नायक भगवान महावीर की जीवनी पर मनोवैज्ञानिक ढङ्ग से कुछ विचार करना चाहते हैं । क्योंकि जब तक हमें यह मालूम नहीं हो जाता कि महावीर किस प्रकार-महावीर हुए, किस प्रकार उनके जीवन का क्रम विकास हुआ, किन किन परिस्थितियों के कारणवे संसार की बड़ी हस्तियों में गिनाने के लायक हुए-तब तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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