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________________ १११ भगवान् महावीर समझ गये होंगे कि उस समय भारतीय समाज की ठीक यही स्थिति हो रही थी, ब्राह्मणों का बलवान अङ्ग शूद्रों के निर्बल अङ्ग के तमाम अधिकारों को छीन चुका था और पुरुषों का सबल अङ्ग स्त्रियों के निर्बल अंग को तत्त्व हीन कर चुका था। पशुओं के प्राणों का कुछ भी मुल्य नहीं समझा जाता था। हज़ारों, लाखों प्राणी दिन दहाड़े यज्ञ की पवित्र वेदी पर तलवार के घाट उतार दिये जाते थे। उनके अन्तर्जगत में अशान्ति की भीषण ज्वाला धधक रही थी। वे लोग बड़ी ही उत्कण्ठा के साथ ऐसे पुरुष की राह देख रहे थे जो उस ज्वाला का-उन मनोविकारों का स्फोट कर दे। महावीर और बुद्ध ने प्रकट हो कर यही कार्य किया उन्होंने अपने असीम साहस और उत्कट प्रतिभा के बल से लोगों के इन अंतर्भावों को वाह्य क्रान्ति का रूप दे दिया। हमारा विश्वास है कि यदि ये दोनों महात्मा लोगों की मनोवृतियों के अनुकूल न रहते हुए उनकी भावनाओं के प्रतिकूल कोई क्रान्ति उपस्थित करते तो कभी उन्हें इतनी सफलता न मिलती, पर वे तो मनोविज्ञान के पूरे पण्डित थे, समाज के इसी मर्ज को और धर्म के असली तत्त्व की खोज में ही उन्होंने अपनी जिन्दगी के बारह वर्ष व्यतीत कर दिये थे। उनसे ऐसी बड़ी भूल कैसे हो सकती थी। उन्होंने बहुत ही सूक्ष्मता से लोगों की मनोवृत्तियों का अध्ययन कर अपने अपने धर्म का मुख्य सिद्धान्त "अहिंसा" और "साम्यवाद" रक्खा। उन्होंने अपनी अतुलप्रतिभा के द्वारा लोगों को मनोवृत्तियों का नेतृत्व Lead करना शुरू किया । और मालूम होता है इसी कारण तत्कालीन समाज ने उन्हें तुरंत ही अपना नेता खोकार कर लिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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