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________________ भगवान् महावीर उसके गौरव युक्त आसन पर प्रतिष्टित करने के निमित्त ही महापुरुषों का अवतार होता है। दैवी और आसुरी सम्पद के घात प्रतिघात में जब आसुरी तत्त्व अपने स्थूल बल के प्रभाव से दैवी तत्त्व को दबा देता है, और अपने अधर्म-युक्त शासन का प्रभाव समाज पर डाल देता है, तब प्रति शासक की तरह दैवीतत्त्व का पक्ष लेकर असत्य का निकन्दन करने के निमित्त प्रकृति के गर्भागार में से एक अमोघ वीर्यवान आत्मा अवतीर्ण होती है। इस अमोघ-शक्ति को लोग "अवतार" की संज्ञा देते हैं । इन पुरुषों के अवतरण का मुख्य हेतु जगत की सार्वदेशिक प्रगति के विरुद्ध जो विघ्न आते रहते हैं उनको दूर करने का होता है। "महत्ता" केवल सामर्थ्य पर ही अवलम्बित नहीं है। प्रत्युत विघ्नों के दूर करने में सामर्थ्य का जो उपयोग होता है उसी पर अवलम्बित है। जितने ही भयकर विनों और प्रति बन्धों के विरुद्ध उसका उपयोग होता है उतनी ही अधिक उसकी महत्ता होती है। संसार के इतिहास में जितने भी महापुरुषों ने पूज्यनीय स्थान प्राप्त किया है, वह केवल सामर्थ्य के प्रभाव से ही नहीं प्रत्युत उस सामर्थ्य के द्वारा अधर्म के विरुद्ध क्रान्ति उठा कर ही किया है। क्रियाहीन सामर्थ्य का उल्लेख इतिहास के पत्रों में नहीं रहता। वस्तुतः देखा जाय तो इन महात्माओं को आकर्षण करने की शक्ति अधर्म में नहीं होती पर जब अधर्म का प्राबल्य धर्म को दबोच देता हैउसे तत्त्वहीन बना देता है तब प्रताड़ित सत्य की दुख भरी पुकार ही उन्हें उत्पन्न होने को वाध्य करती है।। - इस पुस्तक के ऐतिहासिक खण्ड को पढ़ने से पाठक अवश्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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