SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध-कालीन भारत ३७२ 'था, जो हिन्दुस्तान से सीधी मध्य तथा पश्चिमीय एशिया को जाती थी। इसी सड़क के द्वारा मध्य तथा पश्चिमीय एशिया और भारत के बीच, प्राचीन समय में, व्यापार होता था। इन्हीं सब बातों के कारण कोई आश्चर्य नहीं जो यह नगर प्राचीन समय में इतने महत्त्व का समझा जाता रहा हो। एरियन नामक यूनानी इतिहास-लेखक ईसवी दूसरी शताब्दी में हो गया है। उसने भारतवर्ष तथा सिकन्दर के भारत-आक्रमण का वर्णन किया है। उस वर्णन में ई० पू० तीसरी-चौथी शताब्दी के भारतवर्ष के इतिहास की यथेष्ट सामग्री है। तक्षशिला के बारे में वह लिखता है-"सिकन्दर के समय में वह बहुत बड़ा तथा ऐश्वर्यशाली नगर था। इसमें सन्देह नहीं कि सिन्धु और झेलम नदियों के बीच जितने नगर थे, उनमें वह सब से बड़ा और सब से अधिक महत्त्व का समझा जाता था।" यहाँ प्राचीन गन्धार राज्य की राजधानी थी। अशोक के राज्य-काल में उसका प्रतिनिधि यहाँ रहता था। ईसवी सातवीं शताब्दी में ह्वेन्सांग नाम का चीनी बौद्ध यात्री भारतवर्ष में आया था। वह भी तक्षशिला की उपजाऊ भूमि तथा हरियाली की प्रशंसा कर गया है। यह विश्व-विद्यालय बुद्ध के पहले ही स्थापित हो चुका था। जातकों से पता लगता है कि इसमें वेद, वेदांग, उपांग आदि के अतिरिक्त आयुर्वेद, धनुर्वेद, मूर्तिकारी, चित्रकारी, गृहनिर्माण विद्या आदि भी सिखलाई जाती थी। साहित्य, विज्ञान और कला-कौशल के सब मिलाकर अठारह विषयों की पढ़ाई इसमें होती थी । इनमें से प्रत्येक विषय के अलग अलग विद्यालय थे और भिन्न भिन्न विषय अलग अलग अध्यापक पढ़ाते थे। बौद्ध ग्रन्थों से पता लगता है कि अनेक राजाओं ने यहाँ आकर धनुर्विद्या सीखी थी। कितने ही लोगों ने यहाँ संगीत-विद्या में प्रवीणता प्राप्त की थी, जिससे वे अपने मधुर संगीत के द्वारा सर्प आदि जीवों तक को वश में कर लेते थे। कहा जाता है कि प्रसिद्ध संस्कृत वैयाकरण पाणिनि और चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान मन्त्री तथा राजनीति शास्त्र-विशारद चाणक्य ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy