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परिशिष्ट (ग)
यहीं शिक्षा पाई थी। किसी समय महर्षि आत्रेय यहाँ वैद्यक शास्त्र के अध्यापक थे। मगध-नरेश बिम्बिसार के राजवैद्य जीवक ने यहीं के अध्यापकों से चिकित्सा शास्त्र सीखा था। कहा जाता है कि जीवक ने भगवान् बुद्ध की भी चिकित्सा की थी। ____ इस विश्व-विद्यालय में आयुर्वेद की शिक्षा का विशेष प्रबन्ध था। आयुर्वेद के बड़े बड़े ज्ञाता शिक्षा देने के लिये यहाँ रहते थे। वे केवल शिक्षा ही नहीं देते थे, बल्कि स्वयं असाध्य रोगों की चिकित्सा भी करते थे । यहाँ अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ अधिकता से होती थीं । इसी लिये इस विषय की शिक्षा और अनुभव प्राप्त करने के लिये यह स्थान सर्वथा उपयुक्त था। कहा जाता है कि एक बार चीन के एक राजकुमार को भयानक नेत्र-पीड़ा हुई । जब अपने यहाँ के चिकित्सकों की चिकित्सा से उसे आरोग्य लाभ न हुआ, तब वह चिकित्सा कराने के लिये तक्षशिला में आया । यह कथा अश्वघोष के सूत्रालंकार नामक ग्रन्थ में है। "महावग्ग" में लिखा है कि जब जीवक तक्षशिला में आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण कर रहा था, तब एक दिन उसके अध्यापक ने उसे तक्षशिला के चारों ओर एक योजन के घेरे में घूम घूमकर ऐसे पौध और लताएँ ढूँढ लाने की आज्ञा दी, जो औषध के काम में न आते हों । पर बहुत खोज करने पर भी उसे कोई ऐसा पौधा न मिला । हर एक पेड़ या लता में कोई न कोई रोग-निवारक गुण निकल ही आता था । कई वर्ष हुए, यारकन्द में कुछ हस्त-लिखित संस्कृत वैद्यक ग्रन्थ पृथ्वी में गड़े हुए पाये गये थे । उन्हें डाक्टर हानली ने पढ़ा और बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी ने प्रकाशिक किया था। उनसे भी यही प्रमाणित होता है कि तक्षशिला में भायुर्वेद की शिक्षा का विशेष प्रबन्ध था। ___इस विश्वविद्यालय में १६ वर्ष की उम्र के विद्यार्थी भर्ती होते थे। मगध, काशी आदि दूर दूर के स्थानों के विद्यार्थी यहाँ विद्याध्ययन के लिये आते थे । इन विद्यार्थियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com