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राजनीतिक इतिहास
समय भारतवर्ष के राज्य-शासन का सूत्र पहले उसके प्रथम पुत्र वासिष्क और तत्पश्चात् उसके द्वितीय पुत्र हुविष्क के हाथ में था। यह वात कनिष्क, वासिष्क और हुविष्क के शिलालेखों से सिद्ध होती है। कनिष्क के लेख ३ से ४१ वर्ष तक के, वासिक के लेख २४ से २९ वर्ष तक के और हुविष्क के लेख ३३ से ६० वर्ष तक के मिलते हैं । जिस समय वे अपने पिता की अनुपस्थिति में प्रतिनिधि के तौर पर शासन करते थे, उस समय भी वे "महाराज राजातिराज देवपुत्र शाहि" आदि राजकीय उपाधियाँ लगा सकते थे। मालूम होता है कि वासिष्क की मृत्यु कनिष्क के पहले ही हुई; क्योंकि उसके शिलालेख केवल २४ से २९ वर्ष तक के मिलते हैं। अतएव सिद्ध होता है कि कनिष्क के बाद हुविष्क ही गद्दी पर बैठा; क्योंकि उसके लेख ३३ से ६० वर्ष तक के मिलते हैं। इसके सिवा वासिष्क का कोई सिका अब तक नहीं मिला; पर हुविष्क के नाम से बहुत सिक्के मिले हैं, जो उसने कनिष्क के बाद ही राज्याधिकार ग्रहण करने पर चलाये होंगे।
वासिष्क-इसका एक महत्वपूर्ण लेख मथुरा के अजायब घर में है । यह लेख पत्थर के एक यूप ( यज्ञ-स्तंभ) पर है, नो मथुरा के पास ईसापुर में मिला था। पत्थर का यह स्तंभ कोई २० फुट ऊँचा है । इस स्तंभ पर विशुद्ध संस्कृत में एक लेख है, जिस से पता लगता है कि यह यूप "महाराज राजातिराज देवपुत्र शाहि वासिष्क" के २४ वें राज्य-वर्ष में स्थापित किया गया था । इस से सूचित होता है कि वासिष्क का राज्य-काल कनिष्क के राज्य-काल के अन्तर्गत था। इस के राज्य-काल का एक खण्डित शिलालेख साँची में तथा एक और लेख मथुरा में मिला है।
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