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________________ बौद्ध-कालीन भारत ३०४ होता है । लंका के बौद्ध ग्रन्थों में इसका हवाला तक नहीं है । कहा जाता है कि कनिष्क अपने राज-कार्य से समय मिलने पर एक भिक्षु से बौद्ध ग्रन्थ पढ़ा करता था। उन ग्रन्थों में उसने भिन्न भिन्न बौद्ध संप्रदायों के परस्पर विरोधी सिद्धान्त देखकर अपने गुरु, पार्श्व से प्रस्ताव किया कि बौद्ध धर्म के टकसाली सिद्धान्तों का संग्रह करके यदि उन पर प्रामाणिक भाष्य लिखा जाय, तो बहुत अच्छा हो । पार्श्व ने यह बात मान ली और बौद्ध धर्म के विद्वानों की एक बड़ी सभा करने का प्रबन्ध किया गया । पर प्रतीत होता है कि वास्तव में केवल हीनयान पन्थ के सर्वास्तिवादिन् सम्प्रदाय के विद्वान इसमें थे। यह महासभा कश्मीर की राजधानी में की गई। इसके सभापति वसुमित्र और उपसभापति अश्वघोष चुने गये। इसमें ५०० विद्वान उपस्थित थे। इन विद्वानों ने प्राचीन समय के समस्त बौद्ध ग्रन्थों को अच्छी तरह देख भालकर बड़े परिश्रम से त्रिपिटक पर प्रामाणिक महा. भाष्य रचे । जब महासभा का कार्य समाप्त हुआ, तब जो महाभाष्य उसमें रचे गये थे, वे ताम्रपत्र पर नकल करके एक ऐसे स्तूप में रक्खे गये, जो कनिष्क की आज्ञा से केवल इसी लिये बनाया गया था। संभव है, ये बहुमूल्य ग्रन्थ अब भी श्रीनगर के पास किसी स्तूप के नीचे पड़े हों और भाग्यवश कभी मिल जाय । कनिष्क की मृत्यु-कहा जाता है कि जब कनिष्क अन्तिमबार उत्तर की ओर अपनी सेना के साथ धावा कर रहा था, तब उसके सेनापतियों ने आपस में षड्यन्त्र रचकर उसे मार डाला; क्योंकि वे युद्धों में उसके साथ बाहर रहते रहते ऊब गये थे। जिस समय हिन्दुस्तान के बाहर दूर दूर के देश जीतने में लगा था, उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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