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परिचय दिया था । उसी गुण के सहारे हमारे देश ने संसार पर प्रगाढ़ प्रभाव डाला था । आज भी स्याम, लंका, तिब्बत, चीन, जापान, मंगोलिया, कोरिया आदि देशों में बौद्ध धर्म माना जाता है। यद्यपि उन देशों की मानसिक और सामाजिक स्थिति ने बौद्ध धर्म का स्वरूप बहुत कुछ बदल दिया है, तथापि आज भी उनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्तों और आचार शास्त्रों पर भारत की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उधर पश्चिमी एशिया में पहुंचकर बौद्ध धर्म ने ईसाई धर्म के जन्म और सिद्धान्तों पर बहुत असर डाला। ईसाई इतिहास-कार यह बात स्वीकृत नहीं करते; पर पैलेस्टाइन के तत्कालीन धार्मिक पन्थों से बौद्ध धर्म का मिलान करने पर यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाती है कि सम्राट अशोक के भेजे हुए धर्म-प्रचारकों का श्रम व्यर्थ नहीं गया था ।
वह ऐसा ही महत्वपूर्ण समय था, जिसका चित्र इस ग्रंथ में खींचा गया है। सञ्चा इतिहास केवल राजाओं के जन्म, मरण, तथा युद्धों की तिथियों का वर्णन नहीं है । सच्चे इतिहास-कार का कर्तव्य यह है कि वह भूत-पर्व राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक, आर्थिक आदि सभी अवस्थाओं का सुसम्बद्ध वर्णन करे, परिवर्तनों का उल्लेख करे और उन के कारणों की खोज करे। भट्ट जी ने इस आदर्श तक पहुँचने की चेष्टा की है। आशा है कि शीघ्र ही आप भारतीय इतिहास के अन्य समयों की विवेचना भी इसी प्रणाली के अनुसार करेंगे। प्रयाग विश्वविद्यालय ।।
वेणीपूसाद। २६-१२-१९२२." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com