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प्राकथन
पं० जनार्दन भट्ट कृत यह ग्रंथ हिंदी भाषा के ऐतिहासिक साहित्य भांडार में उच्च स्थान ग्रहण करेगा । इस ग्रंथ के निर्माण में कितनी विद्वत्ता और कितने परिश्रम से काम लिया गया है, यह पाठकों को इसके पढ़ने से ही विदित होगा। प्रसिद्ध इतिहासकार गिबन का यह नियम था कि वह नई पुस्तक पढ़ने के पहले विचार कर लेता था कि इस विषय की मुझे कितनी जानकारी है। पढ़ने के बाद वह फिर विचार करता था कि अमुक पुस्तक से मैंने कितनी नई बातें सीखीं । यदि प्रस्तुत ग्रंथ के पाठक इस नियम का अवलम्बन करेंगे, तो उन पर इस ग्रंथ का महत्त्व अच्छी तरह प्रकट हो जायगा।
भारतवर्ष के इतिहास में बौद्ध युग अत्यंत उज्ज्वल और गौरवपूर्ण है । इस युग में धर्म, आचार, साहित्य, कला, उद्योग, व्यापार, राजनीतिक संघटन आदिसभी विषयों में देश ने आश्चर्यजनक उन्नति की थी। भारतीय इतिहास के अन्य युगों में, तथा वर्तमान युग में भी, एक गुण की कमी दिखाई देती है। हमारे देश ने संघटन शक्ति का यथोचित विकास नहीं किया । यदि दूसरों के सामने हमें कई बार सिर झुकाना पड़ा है, तो विद्या, बुद्धि या धन की कमी के कारण नहीं, किंतु संघटन की कमी के कारण ही । बौद्ध काल में देश ने राजनीतिक और साम्प्रदायिक संघटन का उत्तम
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