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________________ १७९ मौर्य शासन परति से जानवरों को साल भर तक चारा मिला करता था । विवीताध्यक्ष का एक प्रधान कर्तव्य यह था कि वह चरागाह में चरनेवाले पशुओं की रक्षा का उचित प्रबन्ध करे। इस काम के लिये कई कर्मचारी नियुक्त थे, जिनके साथ बहुत से शिकारी कुत्ते रहते थे । उन कुत्तों की सहायता से वे चोर, सिंह, भेड़िये और सर्प आदि से पशुओं की रक्षा करते थे। जब चरागाह में अकस्मात् कोई भय की बात उठ खड़ी होती थी, तब चरागाह के रक्षक शंख और नगाड़े बजाकर, कबूतरों के द्वारा समाचार भेजकर, ऊँचे स्थानों पर लगातार बहुत सी आग जलाकर या ऊँचे वृक्षों और पहाड़ों पर चढ़कर राज-कर्मचारियों को भय की सूचना देते थे। चरागाह में चरनेवाले पशुओं के गले में घंटियाँ बाँध दी जाती थीं, जिसमें यदि कोई पशु इधर उधर भटक जाय, तो उसका पता घंटी की आवाज से लग सके। ___छोटे छोटे जानवरों की रक्षा के लिये एक सूनाध्यक्ष नियुक्त था * । राज्य की ओर से अनेक ऐसे रक्षित वन थे, जिनमें कई प्रकार के छोटे छोटे पशु स्वतंत्रता के साथ विचर सकते थे । ऐसे वनों को "अभय वन" कहते थे । इन वनों में रहनेवाले पशु न तो पकड़े जाते थे और न मारे जाते थे। इन वनों में कोई प्रवेश भी न कर सकता था। जो कोई इस नियम का भंग करता था, वह दंड का भागी होता था। शिकार खेलने के लिये अलग वन थे। उन वनों में केवल राजा ही नहीं, बल्कि सर्व साधारण भी शिकार खेल सकते थे । अशोक के आठवें "चतुर्दश शिला-लेख" से पता * कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० २६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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