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बौर-कालीन भारत लगता है कि अशोक ने अपने राज्य-काल के ग्यारहवें वर्ष शिकार खेलने की प्रथा उठा दी थी। मेगास्थिनीज़ ने भी लिखा है कि राजा बड़े समारोह के साथ शिकार खेलने के लिये निकलता था *। कुछ वन ऐसे थे, जिनमें केवल राजा शिकार खेल सकता था। ऐसे वनों में छोटे और बड़े सब प्रकार के जंगली जानवर रहते थे ।
अर्थशास्त्र में अश्वाध्यक्ष के कई कर्तव्य लिखे हैं + । वह नस्ल, उम्र, रंग, कद, चिह्न आदि के अनुसार घोड़ों को भिन्न भिन्न विभागों में बाँटकर रजिस्टर में दर्ज करता था; उन्हें अस्तबल में रखने का प्रबन्ध करता था; उनके लिये चारे आदि का बन्दोबस्त करता था; उन्हें सिखाने का इन्तिज़ाम करता था; उनके दवा-दारू का प्रबन्ध करता था; और हर तरह से उनका ध्यान रखता था। उन दिनों नीचे लिखे हुए स्थानों के घोड़े सब से उत्तम समझे जाते थे। (१) कांभोज (अफगानिस्तान), (२) सिंधु (सिन्ध), (३) प्रारट्ट (पंजाब), (४) वनायु (अरब देश), (५) वाह्नीक (बलन ) और (६) सौवीर (आजकल का गुजरात प्रान्त )। अश्वाध्यक्ष राजा को इस बात की भी सूचना देता था 'कि कितने घोड़े रोगी और बेकाम हैं। रोगी घोड़ों की देख भाल
और दवा-दारू के लिये अलग चिकित्सक नियुक्त थे । किस ऋतु में कैसा चारा देना चाहिए, इसकी भी सलाह चिकित्सक लोग देते थे । जो घोड़े बीमारी या वुढ़ापे से अथवा युद्ध में बेकाम हो जाते थे, उनसे फिर कोई काम नहीं लिया जाता था ।
• Megasthenes; Book II; FragmestxxVII.
+ कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० ३०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com