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________________ बौख-कालीन भारत १७८ (२) विवीताध्यक्ष, ( चरागाहों का अफसर ), (३) सूनाध्यक्ष (शिकार का अफसर ), (४)हस्त्यध्यक्ष (हाथियों का अफसर) और (५) अश्वाध्यक्ष (घोड़ों का अफसर)। गोऽध्यक्ष को केवल गाय बैल की ही रक्षा नहीं करनी पड़ती थी, बल्कि भैंस, भेड़, बकरे, गधे, ऊँट, खच्चर और कुत्ते आदि की भी देख भाल करनी पड़ती थी * । उसका एक प्रधान कर्त्तव्य दोहक ( दुहनेवालों), मन्थक (मक्खन निकालनेवालों) और लुब्धक (शिकारियों) को नियुक्त करना होता था । इनमें से हर एक के जिम्मे सौ चौपायों का झुण्ड रक्खा जाता था। गाय, भैंस आदि के दुहने के बारे में खास तौर पर नियम बने थे। बरसात और जाड़े में दिन में दो बार, पर गर्मी में सिर्फ एक ही बार दुहने का नियम था। जो कोई इस नियम का भंग करता था, वह दंड पाता था । बीमार जानवरों के दवा-दारू के लिये खास तौर पर प्रबन्ध था। जानवरों के साथ कोई बुरा व्यवहार न हो, इसके लिये भी कई कड़े नियम थे । जो मनुष्य पशुओं के साथ निर्दयता करता था, वह दंड का भागी होता था । गाय, बैल और बछड़े का मारना बिलकुल मना था। विवीताध्यक्ष गाय, बैल और अन्य पशुओं के चरने का प्रबन्ध करता था। उसे कई विशेष नियमों का पालन करना पड़ता था। एक ही चरागाह में साल भर तक चराई नहीं हो सकती थी। हर एक ऋतु के लिये अलग अलग चरागाह थे। इस तरह • कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० २६. + कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० ३४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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