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सार चलने वाले। इनमें से बेशरा विवाह नहीं करते किन्तु बाशरा विवाह करके घरबारीके रूपमें रहते हैं। .
ईसाई धर्म __इस्लाम धर्मकी तरह ईसाई धर्ममें भी संन्यासका कोई स्थान नहीं है। यदि किसीको गृहस्थ जीवनसे वैराग्य हो जाय, तो वह एकान्त जीवन बिता सकता है, किन्तु संन्यासीके समान किसी अलग श्रेणीमें नहीं गिना जाता और न विशेष प्रकारके कपड़ेही पहिनता है। उनके धर्मगुरु भी गृहस्थ ही होते हैं। सन् १६०० के लगभग ईसाई धर्ममें जो सुधार हुआ, उससे पहले इस धर्ममें भी मठ तथा साधु-साध्वियोंका जोर था। किन्तु प्रोटेस्टेंट सम्प्रदायमें उनका अस्तित्व बिल्कुल नहीं है, हाँ, पुरानी परम्परापर चलनेवाले रोमन कैथोलिक सम्प्रदायमें अब भी साधु साध्वी होते हैं। किन्तु साधु साध्वी वही बन सकता है, जो योग्य उमरका हो और स्वेच्छा पूर्वक दुनियाकी उपाधियोंसे दूर रहना चाहता हो। दीक्षा के लिये यह नियम है कि उसे २५ वर्षसे पहले साधुओंके लिये चलनेवाले कालेजमें कमसे कम सात आठ वर्ष अभ्यास करके परीक्षा पास करनी चाहिये । परीक्षा पास करने पर भी प्रत्येक व्यक्तिको धर्मगुरु नहीं बनाया जाता। विशेष योग्यता तथा दूसरे गुण होनेपर ही वह धर्मगुरु पदके योग्य होता है-रोमन कैथोलिक तथा ईसाई धर्मके दूसरे सम्प्रदायोंमें भी साधु बननेकी प्रथा दिनप्रतिदिन कम होती जा रही है। दुनियामें रहकर अपने उपयोगके लिये जितना हो सके, कम खर्च करना तथा दूसरोंको सुखी करनेके लिये जितना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com